Khabri Chai Desk : रायगढ़, 7 नवंबर 2025: भारत में पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा उत्पादन के बीच संतुलन बनाने की दिशा में कोयला मंत्रालय ने एक नई पहल की है। देश में तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए सरकार अब भूमिगत कोयला खनन को प्राथमिकता दे रही है। यह तकनीक विकास के साथ-साथ पर्यावरण सुरक्षा का भी ध्यान रखती है।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के धर्मजयगढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित पुरुंगा परियोजना इसी दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। इस परियोजना में कोयला ज़मीन के नीचे से निकाला जाएगा, जिससे ऊपर की हरी-भरी ज़मीन, जंगल और गांव सुरक्षित रहेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, भूमिगत कोयला खनन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे सतह की मिट्टी, पेड़-पौधे और वन्यजीवों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता।
खनन की प्रक्रिया लगभग 500 से 2000 फीट की गहराई पर होती है, जिससे खेती योग्य भूमि और जल स्रोत पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। स्थानीय भूजल स्तर 40 से 50 फीट गहराई तक सीमित होता है, जबकि कोयले की खुदाई उससे कई गुना नीचे की जाती है। इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण इलाकों के कुएं, बोरिंग और तालाब जैसे जल स्रोत अप्रभावित रहते हैं। साथ ही, वनोपज संग्रहण जैसे महुआ और तेंदू पत्ता से जुड़ी आजीविका भी पहले की तरह जारी रहती है।
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वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर भी यह तकनीक अधिक सुरक्षित मानी जाती है। सतह पर विस्फोटक या भारी मशीनों की जरूरत न होने से हाथियों और अन्य जीवों के प्राकृतिक आवागमन में कोई बाधा नहीं आती। विशेषज्ञ बताते हैं कि भूमिगत कोयला खनन की प्रक्रिया से धूल और ध्वनि प्रदूषण में भारी कमी आती है, जिससे आसपास के गांवों में वायु गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है।
इस परियोजना में केवल 27 हेक्टेयर भूमि सतही बुनियादी ढांचे के लिए उपयोग की जाएगी, जबकि कुल क्षेत्रफल लगभग 869 हेक्टेयर है। इसका सीधा अर्थ है कि सतह पर न्यूनतम भूमि उपयोग और अधिकतम संसाधन संरक्षण सुनिश्चित किया गया है। परियोजना से 1000 से अधिक स्थानीय युवाओं को कुशल और अकुशल रोजगार मिलने की उम्मीद है, जिससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नया बल मिलेगा।
सरकार का मानना है कि भूमिगत कोयला खनन भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यह तकनीक न केवल देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगी, बल्कि पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप एक सतत विकास मॉडल भी स्थापित करेगी। विकास और हरियाली का यही तालमेल भविष्य की ऊर्जा नीति की असली पहचान बनेगा।
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