छत्तीसगढ़ की गोदना कला: परंपरा से फैशन तक नया सफर

Khabri Chai Desk : गोदना छत्तीसगढ़ की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। यह सिर्फ टैटू नहीं, बल्कि जनजातीय जीवन का गर्व और पहचान माना जाता है। सदियों से आदिवासी समुदाय शरीर पर स्थायी गोदना बनाकर सौंदर्य, आस्था और सामाजिक महत्व को दर्शाते रहे हैं। महिलाओं के लिए गोदना सौभाग्य और सुंदरता का प्रतीक माना जाता था, वहीं पुरुषों के लिए यह साहस, शक्ति और समुदाय की पहचान बताता था। कई जनजातीय मान्यताओं में गोदना को आध्यात्मिक रक्षा कवच भी माना गया—इस विश्वास के साथ कि मृत्यु के बाद भी गोदना आत्मा के साथ रहता है।

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समय बदलने के साथ गोदना कला ने आधुनिक रूप धारण किया है। अब यह शरीर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वस्त्रों और लाइफस्टाइल फैशन में भी नई जगह बना रहा है। छत्तीसगढ़ के कलाकार प्राकृतिक और एक्रेलिक रंगों का उपयोग कर कपड़ों पर पहाड़, पेड़, नदियाँ, जनजातीय जीवन, लोककथाएँ और पारंपरिक आकृतियाँ उकेर रहे हैं। आज गोदना डिज़ाइन टी-शर्ट, दुपट्टा, बैग, साड़ी, हैंडमेड कपड़ों और होम डेकोर में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

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यह नवाचार परंपरा और आधुनिकता का अनोखा संगम है—जहां छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी कला एक नई वैश्विक पहचान हासिल कर रही है। गोदना केवल डिज़ाइन नहीं, बल्कि लोकजीवन की कहानी, आत्मसम्मान और विरासत की कला बनकर उभर रहा है।
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Author: Khabri Chai

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