Khabri Chai Desk : रायगढ़, 2 नवंबर 2025 : भारत अब कोयला खनन की कहानी नए अध्याय के रूप में लिख रहा है — धरती के ऊपर नहीं, नीचे। ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों और जलवायु प्रतिबद्धताओं को संतुलित करते हुए, सरकार ने कोयला खनन को और सुरक्षित, टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2030-2035 तक देश में बिजली की मांग चरम पर होगी। ऐसे में अंडरग्राउंड माइनिंग, यानी भूमिगत खनन, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण—दोनों के बीच संतुलन की नई राह बनकर उभर रही है।

इस तकनीक में कोयला धरती की 500 से 2000 फीट गहराई से निकाला जाता है, जिससे जंगल, खेत और गांव अछूते रहते हैं। ना सतह की भूमि प्रभावित होती है, ना वनोपज या वन्यजीवों का जीवन। भूमि की सतह पर कोई व्यवधान नहीं होता, जबकि भूमिगत स्तर पर उत्पादन जारी रहता है। सामाजिक रूप से भी, यह विधि गेम-चेंजर मानी जा रही है—न विस्थापन, न पुनर्वास, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार और कौशल विकास के नए अवसर। साथ ही, उच्च गुणवत्ता वाले कोयले की उपलब्धता बढ़ने से आयात पर निर्भरता घटेगी और देश की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
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छत्तीसगढ़ जैसे ऊर्जा-समृद्ध राज्य इन परिवर्तनों के केंद्र में हैं। नई परियोजनाओं और डिजिटल पारदर्शिता सुधारों के साथ, राज्य न केवल कोयला उत्पादन बढ़ा रहा है बल्कि हरित विकास की दिशा में भी एक मजबूत उदाहरण स्थापित कर रहा है।
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