गोंड कला: मध्य भारत की जीवंत जनजातीय कला

Khabri Chai Desk : गोंड कला, मध्य भारत की जीवंत जनजातीय कला है, जो प्रकृति, पौराणिक कथाओं और लोककथाओं से प्रेरित होती है। यह कला मुख्य रूप से मोर, हिरण, बाघ, हाथी और “जीवन का वृक्ष” जैसे विषयों पर केंद्रित होती है। इन कलाकृतियों में जटिल पैटर्न, बिंदु (dots) और रेखाओं (lines) का उपयोग किया जाता है, जिससे चित्रों में गति और जीवन का भाव स्पष्ट होता है। जीवंत और बोल्ड रंगों का इस्तेमाल इस कला की विशेषता है, जो प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है।
गोंड कला में हर आकृति प्रतीकात्मक अर्थ रखती है। मोर अक्सर सुंदरता, पवित्रता और आध्यात्मिक संदेशों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि हिरण कोमलता, मासूमियत और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है। बाघ और हाथी शक्ति और साहस का संकेत देते हैं, और जीवन का वृक्ष ब्रह्मांडीय संतुलन और जीवन की निरंतरता को दर्शाता है। मछली प्रचुरता का प्रतीक होती है और पक्षी आध्यात्मिक संदेशवाहक होते हैं।

Also Read : वृक्षासन: शरीर और मन के लिए संतुलनकारी योग जानिए कैसे ? https://khabrichai.com/vrikshasana-tree-pose-benefits-guide/

यह कला पारंपरिक रूप से गोंड आदिवासी समुदाय द्वारा घरों की दीवारों और फर्श पर बनाई जाती थी, लेकिन अब कैनवास और कागज पर भी बनाई जाती है। जंगगढ़ सिंह और श्याम जैसे कलाकारों ने इस कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है।
गोंड कला प्रकृति और मानव आत्मा के बीच संतुलन को दिखाती है। हर कलाकृति एक कहानी कहती है और दर्शक को प्राकृतिक और आध्यात्मिक दुनिया से जोड़ती है। इसमें पेड़, नदियाँ और वन दृश्य जीवन और मृत्यु के बीच के संबंधों को भी प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार, गोंड कला न केवल दृश्य रूप से आकर्षक है, बल्कि गहरे प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक अर्थों से भरपूर है।

👉सबसे पहले छत्तीसगढ़ के समाचार जानने के लिए जुड़े हमारे What’sApp Group से : https://chat.whatsapp.com/BQBiZ96FZmA30lvDjaFqta

Khabri Chai
Author: Khabri Chai

Advertisement Carousel