काले तिल के तिलगुड़ लड्डू: छत्तीसगढ़ की न्यू ईयर परंपरा और हेल्थ बेनिफिट्स

Khabri Chai Desk : तिलगुड़ भारत में मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल जैसे फसल त्योहारों पर बनने वाला पारंपरिक और पौष्टिक मिठाई स्नैक है। कई राज्यों में इसे सर्दियों का सुपरफूड माना जाता है। खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में ये लड्डू नए साल की शुरुआत पर भी बनाए जाते हैं, क्योंकि इन्हें शुभ, ऊर्जादायक और रिश्तों में मिठास बढ़ाने वाला माना जाता है। आमतौर पर ये काले तिल से बनाए जाते हैं, जो स्वाद और पौष्टिकता दोनों में अधिक समृद्ध माने जाते हैं।

महत्व और परंपरा

काले तिल और गुड़ दोनों की तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में शरीर को प्राकृतिक गर्माहट देने के लिए इन्हें खास तौर पर खाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे बांटते समय “तिलगुल घ्या, गोड गोड बोला” कहा जाता है, जिसका अर्थ है—पुरानी कड़वाहट छोड़कर नए रिश्ते और नई शुरुआत को मिठास के साथ अपनाना। नए साल पर छत्तीसगढ़ में भी इन्हें बाँटने का यही भाव रखा जाता है।

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कैसे बनाए जाते हैं?

काले तिल को धीमी आंच पर हल्का भूनकर गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है। चाहें तो मूंगफली, काजू या नारियल भी मिलाया जा सकता है। मिश्रण थोड़ा गर्म रहने पर हाथ में घी लगाकर छोटे-छोटे लड्डू बना लिए जाते हैं।

वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष में तिल को शनि और गुड़ को सूर्य से जोड़कर देखा जाता है—इसलिए इनका संयोजन संतुलन और शुभ फल का प्रतीक माना जाता है। विज्ञान की दृष्टि से देखें तो तिलगुड़ कैल्शियम, आयरन, फाइबर और मिनरल्स से भरपूर होते हैं, जो हड्डियों, ऊर्जा और पाचन के लिए लाभदायक हैं।

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Author: Khabri Chai

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