Khabri Chai Desk : छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की बात की जाए तो बस्तर का ढोकरा आर्ट सबसे पहले याद आता है। इसे प्रदेश की शान कहा जाता है, क्योंकि यह कला न केवल सैकड़ों साल पुरानी है, बल्कि आज भी पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। ढोकरा कला मूल रूप से ढोकरा जनजाति के कलाकारों द्वारा पीढ़ियों से संभाली जा रही पारंपरिक विधा है। इसमें मोम की खोई हुई तकनीक (Lost Wax Technique) का उपयोग किया जाता है, जो दुनिया की सबसे प्राचीन धातु कला तकनीकों में से एक मानी जाती है।
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ढोकरा की मूर्तियों की खूबसूरती उनके अनोखे डिजाइन और बारीक कारीगरी में छिपी होती है। बस्तर में कलाकार देवी-देवताओं, हाथी, घोड़े, मोर, नृत्यरत पात्रों, आदिवासी जीवनशैली और दैनिक उपयोग की वस्तुओं को पीतल के धातु से बेहद सुंदर तरीके से गढ़ते हैं। यही कारण है कि ढोकरा आर्ट की डिमांड केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, फ्रांस, जापान और जर्मनी जैसे देशों में भी तेजी से बढ़ रही है।
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