नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) ने अपने 10 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस अवसर पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस योजना ने देशभर में छोटे उद्यमियों और स्वरोजगार चाहने वालों के लिए आर्थिक मजबूती की एक नई राह खोली है।
वॉइस ऑफ बैंकिंग के संस्थापक अश्विनी राणा ने बताया कि अप्रैल 2015 में इस योजना की शुरुआत ऐसे लोगों को वित्तीय सहायता देने के उद्देश्य से की गई थी, जो खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं लेकिन पारंपरिक बैंकिंग से उन्हें मदद नहीं मिलती थी।
इस योजना को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है:
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शिशु: ₹50,000 तक का ऋण
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किशोर: ₹50,001 से ₹5 लाख तक
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तरुण: ₹5 लाख से ₹10 लाख तक
वर्ष 2024 में सरकार ने इसमें एक और श्रेणी ‘तरुण प्लस’ जोड़ी, जिसके तहत ₹20 लाख तक का ऋण दिया जा सकता है।
राणा के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में 52 करोड़ से अधिक ऋण वितरित किए गए, जिनकी कुल राशि करीब 23 लाख करोड़ रुपये है। इससे न केवल देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आया, बल्कि स्वरोजगार के क्षेत्र में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है।
इस योजना में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है, और सरकारी बैंकों के साथ-साथ निजी बैंक व एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) भी इसमें सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं।
एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) के सवाल पर राणा ने स्पष्ट किया कि मुद्रा योजना के तहत वितरित ऋणों में औसतन सिर्फ 3.5% एनपीए है, जो कि अन्य लोन कैटेगरीज की तुलना में काफी कम है। इसके अलावा, सरकार इन ऋणों की गारंटर होती है, जिससे बैंकों को नुकसान की भरपाई भी सुनिश्चित की जाती है।
अंत में राणा ने इसे एक “पूर्ण रूप से सफल योजना” बताते हुए कहा कि पीएम मुद्रा योजना ने अपने सभी घोषित उद्देश्यों को हासिल किया है और भारत में आत्मनिर्भरता व उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में एक मील का पत्थर साबित हुई है।
